बॉलीवुड की मौसी और सिल्वर स्क्रीन की प्रसिद्ध चरित्र अभिनेत्री - लीला मिश्रा

बॉलीवुड की मौसी और सिल्वर स्क्रीन की प्रसिद्ध चरित्र अभिनेत्री - लीला मिश्रा

लीला मिश्रा, एक अभिनेत्री जिन्होंने अपने समय में सर्वाधिक फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार जीते , सिल्वर स्क्रीन की प्रसिद्ध चरित्र अभिनेत्री, बॉलीवुड का इतिहास सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। उन्होंने छह दशक से अधिक समय तक फिल्मों में अपना जलवा बिखेरा और कई यादगार किरदार निभाए। उनके अद्भुत कौशल और समर्पण की कहानी उनकी जीवनी का हर पन्ना बताता है।

लीला का जन्म आगरा में एक जमींदार परिवार में हुआ था। लीला की पढ़ाई लिखाई नहीं हुई थी, इसलिए 12 साल की उम्र में उनके मां-बाप ने जल्द ही शादी कर दी। वह 18 साल की आयु में दो बच्चों की मां बन गई, जिनका पति रामप्रसाद मिश्र था। लीला का परिवार रूढ़ीवादी था, लेकिन उनके पति रामप्रसाद खुले विचारों वाले थे। उनका अक्सर मुंबई आना जाना होता था। वह सिनेमा को बहुत पसंद करता था, इसलिए वह कई फिल्मों में साइलेंट रोल्स किया करते थे। ऑर्थोडोक्स परिवार से जुड़ी लीला पहले से ही काफी धार्मिक है। रामप्रसाद के एक दोस्त मामा सिंदे ने लीला को पहली बार देखते ही कहा कि उन्हें फिल्मों में काम करना चाहिए, लेकिन लीला ने स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया। वह फिल्मों में काम करने के लिए राजी हुई जब उनके पति ने कहा।

1930 के दशक की शुरुआत में, उन्हें बॉलीवुड में छोटे-मोटे रोल मिलने लगे।

शुरूआत में लीला मिश्रा को सिर्फ सहायक या पृष्ठभूमि कलाकार के रूप में फिल्में मिलती थीं। उस समय उन्होंने फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखा और अपने अभिनय को बेहतर बनाया। वह पर्दे पर अपनी छोटी सी भूमिका को बखूबी निभाती थीं। उनकी लगन और निष्ठा किसी से छुपी नहीं रह सकी।

फिल्म निर्देशकों को धीरे-धीरे उनकी प्रतिभा का एहसास हुआ और उन्हें मां, पड़ोसी और बुआ की सहायक भूमिकाएं मिलने लगीं। 1940 के दशक तक वह एक लोकप्रिय चरित्र अभिनेत्री बन चुकी थीं।

1950 और 1960 के दशक लीला मिश्रा के लिए बेहतरीन रहे। हिंदी सिनेमा के बड़े पर्दे पर उन्हें बहुत सराहनीय भूमिकाएं मिलीं। उन्हें हर तरह का किरदार निभाना बहुत आसान था, चाहे वह एक कठोर माँ का हो या एक प्यारी दादी का। उनकी आँखों में एक विशिष्ट चमक थी जो दर्शकों को उनसे जोड़ती थी।

लीला और उनके पति रामप्रसाद ने 1936 में आई एक फिल्म 'सति सिलोचना' में एक साथ काम किया। लीला को इस फिल्म के लिए प्रति महीने 500 रुपये मिलते थे, जबकि रामप्रसाद को 150 रुपये मिलते थे। लीला को रामप्रसाद से दोगुने पैसे मिलते थे क्योंकि फिल्मों में फीमेल कलाकारों की कमी थी। उन्हें चित्रलेखा, रामबाण, शिशमहल, आवारा, दाग, प्यासा, लावंती, लीडर, बहु बेगम और अमर प्रेम में काम मिला।

लीला मिश्रा का उत्कृष्ट अभिनय कई पुरस्कारों से सम्मानित हुआ। उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेत्री के दो फिल्मफेयर पुरस्कार मिले। 1972 में सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला। उन्हें 2001 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया, जो कला के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए दिया जाने वाला चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

लीला मिश्रा ने बॉलीवुड में छह दशक से अधिक समय तक अपनी गहरी छाप छोड़ी। वह एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री थीं, जो हर तरह का किरदार बखूबी निभाती थीं। उनकी जीवनी अगली पीढ़ी के कलाकारों को प्रेरणा देती है।

लीला मिश्रा अपनी बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग के लिए प्रसिद्ध थी। वह एक अच्छी गायिका भी थीं और फिल्मों में गा चुकी थीं। वह अपने निजी जीवन में भी बहुत सरल और सहज थीं। 80 वर्ष की उम्र में हॉर्ट अटैक से मर गए। अपनी अद्भुत अदाकारी से लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगी।

भारतीय सिनेमा में लीला मिश्रा एक महान अभिनेत्री थीं। उनके अभिनय ने दर्शकों को प्रेरित किया और उनका मनोरंजन किया। उनका योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा।"

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.